TEXTS 1.KAVYAGULSHAN
2.KAHANIKALASH
I भक्तिकाल
भक्तिकाल हिंदी साहित्य के स्वर्ण युग माना जाता है
1.सगुण भक्ति –राम(तुलसीदास)
कृष्ण( सूरदास,मीराबाई )
2.निर्गुण भक्ति –ज्ञानाश्रयी( कबीरदास )
प्रेमाश्रई (जायसी)
1. कबीर दास 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत । ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक कवि रामानंद का शिष्य अनपढ़ फकीर देशाटन और साधुओं की संगति से ज्ञानी बने गुरु को प्रमुख स्थान कबीरदास की राम - निर्गुण-निराकार ब्रह्म कबीर का सारा जीवन सत्य की खोज तथा असत्य के खंडन में व्यतीत हुआ। कवि और समाज सुधारक सधुक्कड़ी या खिचड़ी भाषा जनभाषा का प्रयोग कबीरदास वाणी का डिक्टेटर - हज़ारी प्रसाद द्विवेदी कबीर भारतीय संस्कृति का हीरा धर्मदास ने कबीरदास की वाणियों का संग्रह " बीजक " नाम के ग्रंथ मे किया |" बीजक " के तीन भाग है | 'साखी',सबद और 'रमैनी'
दोहा १
बुरा जो देखन मैं चला,बुरा न मिलिया कोय जो दिल खोजा आपना,मुझसे बुरा न कोय ||
कबीदास बता रहा है बुरा व्यक्ति और बुराई को देखने के लिए मैं निकला |लेकिन बुराई या बुरा व्यक्ति मुझे कहीं नहीं मिला|सब किसी न किसी तरह से अच्छा ही लगा |इसलिए मैं ने अपने आपको देखा |तब मुझे पता चला मुझसे बड़ा बुरा व्यक्ति नहीं है ,बुराई मुझमें ही है | भलाई और बुराई दृष्टिकोण पर आधारित है |दृष्टिकोण बदलने के साथ कैसे दुनिया बदलेंगे इसके बारे में कबीरदास जी यहाँ बताया है |प्रत्येक व्यक्ति ही अपनी अपनी दुनिया बनाते है |
दोहा २ पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ ,पंडित भया न कोय ढाई अखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय || कबीरदास बता रहा है सिर्फ किताब पढने से कोई पंडित बन नहीं पायेंगे |ढाई अक्षरवाला शब्द 'प्रेम' को यथार्थ रूप से पहचानने से सच्चा ज्ञान हमे मिलेंगे|कोरा पुस्तकीय ज्ञान से कोई फायदा नहीं है ,यह तथ्य कबीरदास जी हमें समझा रहा है| ज्ञान का सही रूप हमें दुनिया से मिलेंगे|दुनिया से ज्ञान मिलना है तो दुनिया से प्यार करना होगा |जिसको दुनिया से प्यार करने की क्षमता है उसको यथार्थ ज्ञान मिल जायेगा |
दोहा ३ हिन्दू कहे मोहि राम पियारा,तो के कहैं रहमाना आपस में दोउ लदी-लड़ी मुए,मरम न कोऊ जाना || परमात्मा को हिन्दू 'राम'कह कर पुकारता है और मुसलमान (तुर्क) रहमान कह कर पुकारता है |अपने अपने परमात्मा के लिए दोनों लड़कर मर जाते है |फिर भी जो बात समझना है दोनों समझता ही नहीं |धर्म मानव को सही रास्ता दिखाने के उद्देश्य में बनाया था|लेकिन आज धर्म को सही रूप से पहचाननेवाला कोई नहीं है | परमात्मा की एकता को यहाँ सूचित किया है|अलग अलग नामों से पुकारने पर भी परम सत्ता एक ही है |लेकिन ,यह सत्य भिन्न धर्म के लोग पहचानता ही नहीं|इस तरह वे अनमोल मानव जीवन नष्ट कर रहा है|
दोहा ४
बोली एक अनमोल है,जो कोई बोली जानि हिये तराजू तुली के,तब मुख बाहर आणि || दुनिया के अनमोल रत्न 'वाणी'के बारे में कबीरदास जी यहाँ बता रहा है|वाणी अनमोल रत्न है|अनमोल रत्न मिलना आसान काम नहीं है|उसी प्रकार सही वाणी मिलने के लिए हमें तपस्या करना पड़ेगा|वाणी का मूल्य जाननेवाला व्यक्ति हृदय के तराजू में तौल कर ही उसका प्रयोग करेंगे | बातचीत करते वक्त ध्यान देने की आवश्यकता पर कबीरदास जी यहाँ सूचना दे रहा है |दूसरों पर चोट पहूँचानेवाले शब्दों का प्रयोग हमें रोकना है| इस तरह दुनिया के कई समस्याओं का समाधान हमें मिलेंगे|दोहा ५ निंदक नियरे राखिए,आँगन कुटी छवाय बिन पानी,साबून बिना ,निर्मल करे सुभाय ||
अक्सर हम हमें निंदा करनेवालों से नाराज़ दिखायेंगे|कबीरदास जी बता रहा है -यह सही नहीं है|निंदा करनेवाले लोगों को हो सकें तो हमारे घर के सामने ही कुटिया बनाकर जीने का मौका देना चाहिए |क्योंकि वे हमेशा हमारी कमियाँ बताते रहेंगे |इस प्रकार हमें त्रुटी सुधारने का मौका मिलेंगे |पानी,साबून आदि के बिना हम अपने आप को निर्मल बना पायेंगे | दूसरों के निंदा वचन से कैसे हमें लाभ मिलेंगे,इसकी सूचना कबीरदास जी बता रहा है |
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888888888888888888888888 2. रहीम के दोहे अब्दुल रहीम खान -ए खाना रहीम का पालन पोषण अकबर ने धर्मपुत्र के तरह किया रहीम केपिटा बैरम खान अकबर के शिक्षक थे 'मीरअर्ज'की उपाधि से सम्मनित तुर्की,अरबी,फ़ारसी भाषाओं के पंडित 'र्ह्हीम दोहावली','बरवे नायिका भेद','मदनाष्टक' ,'रास पंचाध्यायी'आदि रचनाएँ
दोहा १ इस दोहा में रहीम जी सच्चे मित्र को कैसे पहचान पायेंगे बता रहा है|हमें कई दोस्त होंगे |सब हमसे जुड़ने का अलग -अलग कारण भी हो सकता है |उनमें से सच्चा मित्र कौन है ?इसका निर्णय कैसे कर पायेंगे ?जो मित्र हमारे मुसीबत के समय पर हमारे साथ रहते है ,वही सच्चा मित्र है | मित्र और मित्रता के बारे में रहीम यहाँ बताया है |दोहा २ रहीम जी बता रहा है प्रेम धागा बहुत नाजुक होता है |जिस प्रकार एक धागा टूट जाने पर वह दुबारा जुड़ाना मुश्किल काम बन जाता है ,उसी प्रकार प्रेम का रिश्ता टूट जाने पर दुबारा मिलाना भी मुह्किल काम है |टूटे हुए धागे जुडाने से उसमें गाँठ हमेशा दिखाई देगा|उसी तरह दो व्यक्तियों के बीच की रिश्ता टूटने के बाद मिलाने पर भी पहला जैसा मिठास कभी होता ही नहीं| दो आत्माओं के बीच प्रेम की धागा को हमेशा संभालने की आवश्यकता के बारे में रहीम जी यहाँ इशारा कर रहा है |दोहा ३ तरुवर हमारेलिए अपना फल पकाते है |प्काने के बाद तरुवर उनके फल हमें दे देते है |उनमें से एक भी फल तरुवर लेता ही नहीं\उसी तरह तालाब अपनी पानी औरों को देते रहते है|तालाब की पानी अपना है कह कर बैठता नहीं|उसी प्रकार सज्जन लोग भी अपनेलिए कुछ इकठ्ठा कर रखता ही नहीं | परोपकार की महत्ता के बारेमे रहीम जी ने इस दोहा मेंबताया है |औरों को देने से हमारी धन -दौलत कभी घटेगा नहीं बढ़ते रहेंगे |दोहा ४ कौवा और कोयल दिखने में एक जैसा ही है |दोनों को देख कर पहचानना आसान काम नहीं है |वसंत ऋतू आने पर कोयल अपनी मधुर आवाज़ में कूकने लगती है |तब हमें समझ पायेंगे कौवा और कोयल का अंतर |उसी तरह बाहरी रूप से किसी व्यक्ति को पहचानना आसान काम नहीं है |जब वह व्यक्ति कुछ बोलने लगेंगे या कुछ करने लगेंगे ,तब उसका सही रूप हमारे सामने प्रकट हो जायेंगे | व्यवहार और बोलचाल से लोगों को पहचानने के बारे में रहीम जी यहाँ बताया है |दोहा ५ हमारे पास मोती की माला है |वह माला टूट जायेंगे तो हम क्या करेंगे ?हम दुबारा उसको पिरोकर माला बनाकर रखेंगे |क्योंकि वह मूल्यवान चीज़ है |उसी प्रकार सज्जन लोगों को वे हज़ार बार रूढ़ कर जाने पर भी उसे वापस लाना है |क्योंकि सज्जन लोग बहुत विरले ही मिलेंगे | सज्जन लोगों की महत्ता के बारे में इस दोहा में बताया है |
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3.मीराबाई कृष्ण भक्ति शाखा के कवयित्री राजस्थान के जोधपुर के मेडवा राजवंश की राजकुमारी बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रूचि राजस्थानी मिश्रित व्रज भाषा में रचना 'नरसीजी की मायरा' ,'गीत गोविन्द की टीका','राग गोविन्द','मीराबाई की पदावली ' -मुख्य रचनाएँ
मीराबाई कह रही है -मैं अपने प्रभु (कृष्ण)के प्रेम में तल्लीन होकर ,अपने पैरों में घुंघरू बाँध कर नाच रही हूँ|मैं श्रीकृष्ण की दासी हूँ|मेरा नाच देख कर कुछ लोग मुझे बावली कह रही है |मेरे कुल के लोग मुझे कुल के नाश करनेवाली कह कर गालियाँ दे रही है|लेकिन मैं इन पर ध्यान ही नहीं देती|मेरे देवर राणाजी ने मेरे नाच अनुचित मान कर मुझे मारने के लिए विष का प्याला भेजा था |विष का असर मुझ पर नहीं पड़ेगी|क्योंकि मैं कृष्ण रुपी अमृत पी चुकी हूँ|मृत्यु भय मुझे नहीं है,इसलिए मैंने वह विष का प्याला हस्ते हुए पिया|है,गिरिधर मेरे मन में एक ही अभिलाषा है कि तुमसे मिल पाऊँ | मीराबाई के अटल कृष्ण प्रेम इन पंक्तियों में दर्शनीय है |
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4.अरुण यह मधुमय देश हमारा -जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के कवि,कहानीकार,उपन्यासकार,नाटककार,एकांकीकार ,निबंधकार छायावाद युग के चार स्तंभों में एक राष्ट्र जागरण के तेजस्वी कवी 'संस्कृति के चार अध्याय'के लेखक प्रमुख रचनाएँ काव्य-'कामायनी','आँसू','लहर','झरना'नाटक-'चन्द्रगुप्त','स्कंदगुप्त','ध्रुवस्वामिनी' आदि
सारांश ये पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित 'स्कंदगुप्त'नामक नाटक से लिया गया है |सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी कोर्नलिया मूलतः यूनानी है |प्रसाद जी कोर्नलिया के कहने के रूप में इन पंक्तियों को प्रस्तुत किया है || हमारे देश में लालिमा से पूर्ण सूर्य का दर्शन सबसे पहले मिलता है |अनजान क्षितिज(धरती और आकाश के मिलने का काल्पनिक स्थान) को भी भारत में आश्रय मिलता है |अर्थात विभिन्न कारणों से अपने देश छोड़ने पड़े दुनिया के किसी को भी भारत में हमेशा स्वागत मिला है |क्योंकि भारतीयों का दिल विशाल है |यहाँ सूर्य ज्ञान का प्रतीक है |भारत से ज्ञान की किरण दुनिया में फ़ैल रहा है -यही कवी बताना चाहता है | प्रातः कालीन सूर्य की किरणें धरती पर पड़ते वक्त ऐसा महसूस हो रहा है की हर कहीं कोई कुंकुम वर्ण छेड़ दिया हो|सूरज के स्वर्णिम किरण पड़ते ही पेड़ों की हरियाली पर जीवन छिटकता है | पेड़ों की शाखाएँ स्वर्णिम सूर्य रुपी कमल के चारों और नाच रहे है ,यह प्रतीति कवि को हो रहा है | असंख्य पक्षी गण और पर्वतों से आनेवाली मलय समीर भारत की और ही आते है |अपनी घोंसला भारत में है -इसी विचार से वे भारत की और आ रहे है | उनका यह विश्वास है कि कहीं आश्रय न मिलने पर भी भारत में आश्रय मिलेंगे|इसलिए वे भारत की और आते है |यहाँ कवि बता रहा है भारतीयों के करुणापूर्ण व्यवहार और प्राकृतिक सुषमा हमेशा अन्य देश के लोगों को भारत की और आकृष्ट कर रहे है | वर्षा लोगों के और प्रकृति के तप्त दिलों की प्यास बुझाती है | भारतीयों के दिल करुणा से भरी हुई है | भारतीय सभी से करुणापूर्ण व्यवहार करनेवाला है |दूसरों के दुःख देखते वक्त भारतीयों के आँखों से पानी, वर्षा के बूंदों के समान निलकते है |भारतीयों के दिलों के करुणा रुपी नीर उनकी आँखों में आँसुओं के रूप में हमेशा रहते है |भारत का समुद्र तट विशाल है| अंनत दिखनेवाला समुद्र को भी भारत में आने पर किनारा मिलता है |अर्थात भारत सभी को आश्रय देनेवाला देश है |भारतीय संस्कृति में करुणा की महत्ता को यहाँ व्यक्त किया है | कवि को लग रहा है उषा रुपी सुन्दरी सूर्य रुपी सोने की घडा को लेकर निकली हो और और वह सभी पर सुख की वर्षा कर रही हो |प्रातः काल में सूर्य के किरण मानव और प्रकृति पर नए जोश और उल्लास भरता है |यही कवि इशारा कर रहा है | कवि कह रहा है मानवीय सभ्यता का विकास भारत में हुआ था |भारतीय अपने देश की महत्ता कभी भूल जाते है |विदेशी लोग भी भारत की महिमा गान कर रहे है|हमें अपने देश की गरिमा को पहचानना है और पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण से अपने आप को बचाना है |
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👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩5.प्यासा कुआँ ज्ञानेद्रपती
ज्ञानेंद्रपती हिंदी साहित्य के समकालीन कवी है |पर्यावरण सम्बन्धी विषयों पर ढेर सारी रचनाओं के द्वारा समाज को जगाने की कोशिश कवि ने किया है |'प्यासा कुआँ'कविता में मानव के द्वारा पर्यावरण हो रहे अत्याचार का वर्णन हुआ है |विकास की और पल प्रति पल बढनेवाला मानव पर्यावरण से दूर हो रहा है |यही इस कविता का मुख्य आशय है |
सालों से बारिश की पानी से भरा वह कुआँ सबके प्यास बुझाते रहे|प्यास क्या है ?यह कुआँ को मालुम ही नहीं था | |फिर भी वह प्यास बुझाता रहा |लेकिन, आज कुआँ प्यासा है |क्योंकि कुआँ से पानी लाने कोई आता ही नहीं |कुआँ के पास ही हैण्ड पम्प लगाया |इसलिए कुआँ से पानी लेने की कोई आवश्यकता ही नहीं |
पानी लाने वाले बाल्टी की आवाज़ सुनने की इच्छा से बैठनेवाले कुआँ की और एक दिन अचानक एक प्लास्टिक बोतल आ गिरा |पानी पीकर किसी ने बोतल फेंका था|उसके बाद कई बोतल आते रहे और साथ ही अन्य कचरा भी|उस तरह कुआँ आज एक कूडादान बन गया है |मानव पहले कुआँ से पानी ले कर ही बाद में हैण्ड पम्प,मोटर आदि आये|मानव कुआँ से दूर हो गए |वक्त के बदलने के साथ मानव प्लास्टिक बोतल की पानी सर्वश्रेष्ठ घोषित किया |विकास के प्रत्येक चरण में मानव प्रकृति से दूर हो रहे है|कवि पूछ रहा है पर्यावरण को भूलकर हो रहे विकास कैसे स्थाई हो पाएँगे ?
पर्यावरण के प्रति हमारा ध्यान आकृष्ट करना कवि का मुख्य उद्देश्य है |
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अध्याय 6 केदारनाथ सिंह अकाल में दूब
हिंदी साहित्य के समकालीन कवी तीसरा सप्तक के कवी जे.एन.यु के हिंदी विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष रचना संसार 'बाघ' -लम्बी कविता 'उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ','अभी बिलकुल अभी','ज़मीन पाक रहा है' आदि काव्य रचनाएँ 'कल्पना और छायावाद','मेरे समय के शब्द'-आलोचना 'कुमारन आशान सम्मान से सम्मानित कवी 'अकाल में दूब' साहित्य अकादमी से पुरस्कृत रचना (1989)
प्रकृति और जीवन के उल्लास के कवी केदारनाथ जी की एक प्रमुख रचना है 'अकाल में दूब '|इसमें जीवन पर गहरा आस्था प्रकट किया गया है |जीवन एवं पर्यावरण समकालीन समय में चुनौतियों का सामना कर रहा है |प्रकृति पर मानव हमेशा अतिक्रमण कर रहा है |इसके कारण अकाल आ रहा है |अकाल का चित्र खींचते हुए कवि समाज को चेतावनी दे रहा है -प्रकृति से दूर हो कर जो विकास हम कर रहे है ,वह स्थायी नहीं होंगे | पर्यावरण पर हो रहे अत्याचारों के कारण आये सूखा का का वर्णन करते हुए कवी बता रहा है भयानक सूखा के कारण अपनी घोंसला छोड़ कर पंछी कहीं चले गये है |अपने बिलों को छोड़ कर चींटे भी कहीं चले गए है |मवेशी एक दुसरे को देख कर खड़े हुए है|पिताजी कह रहा है -ऐसा भयानक दूब अभी तक मैंने देखा ही नहीं|बस्ती में कहीं भी दूब दिखता ही नहीं | कहीं दूब मिलेंगे -यह आशा के कारण बेटा घर से निकलता है|कुओं में,गलियों में ढूंढने पर भी दूब नहीं मिला|सूख के कारण पानी लेनेवाला घडा उल्टा कर रखा हुआ है |सभी अकाल से इतना प्रभावित है कि जीवन की प्रतीक्षा मानवों के आँखों में भी नहीं है |निराश हो कर बेटा वापस अपने धर की और लौट आते है|अचानक एक कुआँ के पास के नाले में शीशों के टुकड़ों के बीच में एक हरी पत्ती मिलते है|दूब है ,यह खबर पिताजी को देने पर उसका चेहरा चमक उठता है|दूब है तो अभी भी प्रतीक्षा बाकी है -कह कर पिता किसी विचार में डूब जाते है | दूब यहाँ आशा का प्रतीक है |पर्यावरण पर अत्याचार करते रहेंगे तो हमें अकाल का सामना करना पड़ेगा|यही संदेश कवी हमें दे रहे है | 👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩अध्याय 7 मुक्ति की आकांक्षा -सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
तीसरे सप्तक के कवी हिंदी साहित्य के कवी एवं लेखक काव्य रचनाएँ -'बांस कपुल','काठ की घंटिया ','कुआनो नदी ','खूंटियों पर टंगे लोग'आदि कथा साहित्य -'पागल कुत्तों का मसीहा','सोया हुआ जल 'आदि नाटक -'बकरी','लड़ाई' आदि 'खूंटियों पर टंगे लोग' साहित्य अकादमी से पुरस्कृत
मुक्ति की आकांक्षा कविता में स्वतंत्रता का महत्व बताया गया है |पिंजड़े में चिड़िया को समय -समय पर पानी ,दाना सब मिलते रहेंगे |बाहर पानी के लिए तालाब या नदी तलाशना पड़ेगा और दाने के लिए भी भटकना पड़ेगा |बाहर चिड़िया को शिकारी से डर कर जीना पड़ेगा |पिंजरे में वह बिलकुल सुरक्षित रह सकता है| पिंजरा के बाहर इतनी समस्याएँ तो है , मगर वह स्वच्छंद हो कर जी पाएँगे|इसलिए वह पिंजरे के बाहर की दुनिया ही पसन्द करता है | पिंजरे से बाहर जाने की कोशिश करता रहता है |पिंजरा टूट जाने पर या चिड़िया को मुक्त करने पर वह अनंत आसमान की और फ़ैल जाएगा ही |सुख सुविधावाली गुलामी से सौ गुना अच्छा तो कष्टप्रद आज़ादी ही है | मनुष्य सहित सभी पशु ,प्राणी स्वतंत्रता प्रिय होती है |सभी सुविधाएँ देने पर भी बंधन बंधन ही है |उस तरह जीने की इच्छा किसी को भी नहीं होगा | 👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩
पर्यावरण के प्रति हमारा ध्यान आकृष्ट करना कवि का मुख्य उद्देश्य है |
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अध्याय 6
केदारनाथ सिंह अकाल में दूब
हिंदी साहित्य के समकालीन कवी
तीसरा सप्तक के कवी
जे.एन.यु के हिंदी विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष
रचना संसार
'बाघ' -लम्बी कविता
'उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ','अभी बिलकुल अभी','ज़मीन पाक रहा है' आदि काव्य रचनाएँ
'कल्पना और छायावाद','मेरे समय के शब्द'-आलोचना
'कुमारन आशान सम्मान से सम्मानित कवी
'अकाल में दूब' साहित्य अकादमी से पुरस्कृत रचना (1989)
प्रकृति और जीवन के उल्लास के कवी केदारनाथ जी की एक प्रमुख रचना है 'अकाल में दूब '|इसमें जीवन पर गहरा आस्था प्रकट किया गया है |जीवन एवं पर्यावरण समकालीन समय में चुनौतियों का सामना कर रहा है |प्रकृति पर मानव हमेशा अतिक्रमण कर रहा है |इसके कारण अकाल आ रहा है |अकाल का चित्र खींचते हुए कवि समाज को चेतावनी दे रहा है -प्रकृति से दूर हो कर जो विकास हम कर रहे है ,वह स्थायी नहीं होंगे |
पर्यावरण पर हो रहे अत्याचारों के कारण आये सूखा का का वर्णन करते हुए कवी बता रहा है भयानक सूखा के कारण अपनी घोंसला छोड़ कर पंछी कहीं चले गये है |अपने बिलों को छोड़ कर चींटे भी कहीं चले गए है |मवेशी एक दुसरे को देख कर खड़े हुए है|पिताजी कह रहा है -ऐसा भयानक दूब अभी तक मैंने देखा ही नहीं|बस्ती में कहीं भी दूब दिखता ही नहीं |
कहीं दूब मिलेंगे -यह आशा के कारण बेटा घर से निकलता है|कुओं में,गलियों में ढूंढने पर भी दूब नहीं मिला|सूख के कारण पानी लेनेवाला घडा उल्टा कर रखा हुआ है |सभी अकाल से इतना प्रभावित है कि जीवन की प्रतीक्षा मानवों के आँखों में भी नहीं है |निराश हो कर बेटा वापस अपने धर की और लौट आते है|अचानक एक कुआँ के पास के नाले में शीशों के टुकड़ों के बीच में एक हरी पत्ती मिलते है|दूब है ,यह खबर पिताजी को देने पर उसका चेहरा चमक उठता है|दूब है तो अभी भी प्रतीक्षा बाकी है -कह कर पिता किसी विचार में डूब जाते है |
दूब यहाँ आशा का प्रतीक है |पर्यावरण पर अत्याचार करते रहेंगे तो हमें अकाल का सामना करना पड़ेगा|यही संदेश कवी हमें दे रहे है |
अध्याय 8 महेंद्र भटनागर -नयी नारी हिंदी भाषा के समकालीन कवि हिंदी साहित्य के प्रगतीशील कवी विचारों और भावों को रचनाओं में प्रमुखता कविता संग्रह -'अभियान','आहत युग','जीवनबोध'आदि आलोचना -'आधुनिक साहित्य और कला','हिंदी कथा साहित्य विविध आयाम' आदि
'नयी नारी'कविता में कवी नारी को अपने पैरों में सदियों से पड़े जंजीरों को तोड़ने का आह्वान किया है |सालों से समाज नारी को पुरुष के दासी ,आत्मा विहीन सेविका , हृदय विहीन गुडिया आदि रूपों में फँसाकर रखा है | कवी बता रहा है उस सेविका और गुडिया से तुम्हें अभी बचना है |सदियों से तुम पर आरोपित दासी की छवी से बचने का समय आया है | आदमी के मनोरंजन का वस्तु नहीं हो तुम |अपनी क्षमताओं को पहचान कर तुम्हें आगे बढना है |अपने घर में और पती के घर में फूलों से भरी सेज की प्रतीक्षा करके अपना अनमोल जीवन किसी के चरणों में अर्पित करने की आवश्यकता नहीं है | हर समय चुप्पी साधने की आवश्कता नहीं है | तुम पर हो रहे अन्यायों के खिलाफ आवाज़ उठाने का वक्त आ गया है |समय बदला है |तुम्हें मदद देने के लिए कई लोग है | आदमी के दासी के रूप में और कैदखाने के कैदी के रूप में विवश हो कर अनमोल जीवन चलाने की आवश्यकता नहीं है |कवी बता रहा है ,नारी को दासी माननेवालों में मैं नहीं हूँ |मुझे विश्वास है कई लोग मेरे साथ होंगे |कवी नारी से कह रहा है -अपने सखा के रूप में मैं तुम्हें समझ रहा हूँ |दासता के बंधन में नहीं प्यार के बंधन में तुम्हें बाँधना चाहता हूँ | नारी के प्रति दृष्टिकोण बदलने की सलाह यहाँ कवी ने दिया है | 👩👩👩👩👩👩👩👩👩 बड़े घर की बेटी प्रेमचन्द
हिंदी सहित्य के उपन्यासकार,कहानीकार,निबन्धकार,नाटककार कुशल संपादक 'कलम के सिपाही' नाम से विख्यात लेखक मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव उर्दू लेखन 'नवाब राय'नाम में हिन्दी लेखन 'प्रेमचन्द'नाम में भारतीय गाँवों का यथार्थ चित्रण करनेवाला साहित्यकार प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक
मुख्य पात्र बेनी माधव सिंह,श्रीकण्ठ,लालबिहारी ,भूप सिंह ,आनन्दी कथावस्तु रियासत के तल्लूकेदार भूपसिंह की चौथी बेटी आनंदी का विवाह गोरिपूर के जमींदार बेनी माधव सिंह के बड़े बेटे श्रीकंठ के साथ होता है |रूपवती और गुणवती आनन्दी कम दिनों से ही ससुरालवालों के आँखों के तारे बन पायी|एक दिन लाल बिहारी सिंह और आनन्दी के बीच खाने में घी डालने के बारे में वाद विवाद होता है और लाल बिहारी आनन्दी के माइके को लेकर व्यंग्य करता है |वाद-विवाद के बीच लालबिहारी सिंह आनन्दी की और खडाऊं फेंकता है और उससे आनन्दी की ऊँगली में चोट लगती है |आनन्दी अपनी पती से देवर की शिकायत करती है |श्रीकंठ क्रुद्ध हो कर अपने भाई का मूंह न देखने का कसम खाता है |लाल बिहारी अपनी भाभी से क्षमा माँगती है और आनन्दी का मन पिघल जाती है|वह श्रीकंठ से अपने भाई को क्षमा करने की पार्थना करती है और दोनों भाई एक साथ रहने का निर्णय भी करते है |इस तरह आनंदी परिवार की समस्या का हल निकालती है और ग्रामीण लोग कहते है बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती है |पात्र और चरित्र चित्रण बेनी माधव सिंह,श्रीकण्ठ,लालबिहारी ,भूप सिंह ,आनन्दी आदि इस कहानी के पात्र है |आनन्दी इस कहानी के मुख्य पात्र है |सुसंस्कृत,रूपवती,गुणवती भारतीय नारी के रूप में आनन्दी का चित्रण हुआ है |सात पुतिर्यों के पिता भूपसिंह इस कहानी का प्रमुख पात्र है |भारतीय गाँवों के याथार्थ चित्र हमें देने में इस कहानी के पात्र सक्षम है |श्रीकंठ संयुक्त परिवार को समर्थन देनेवाला पढ़ा-लिखा पात्र है और |लाल बिहारी घर में रह कर पहलवानी करनेवाला पात्र |संवाद कहानी की कथावस्तु को आगे ले चलनेवाला तत्व है ,संवाद |संवाद कहानी का आत्मा है |इस कहानी में प्रेमचन्द जी ने ग्रामीण भाषा में संवाद तैयार किया है |प्रत्येक पात्र के आदत समझ पाने युक्त संवाद योजना इस कहानी की विशेषता है |देश- काल कहानी कहाँ घटित हो रहा है ,यह जानकारी पाठकों को मिलने से कहानी की ओर वे आकृष्ट होंगे | 'बड़े घर की बेटी' भारतीय परिवार की कहानी है |प्रत्येक घर में ऐसी घटना होने की संभावना भी है | भाषा -शैली प्रत्येक लेखक का अपनी भाषा और अपनी शैली होना तो आम बात है |इस कहानी में प्रेमचन्द जी ने ग्रामीण भाषा और शैली को अपनाया है |उद्देश्य भारत में संयुक्त परिवार का प्रचलन था|संयुक्त परिवार किसी भी समस्या का हल कैसे निकाल जाता है ,यह इस कहानी में दिखाया है |घर ,परिवार,समाज और देश के निर्माण में नारी को अहम भूमिका निभाना है ,इसकी सूचना आनंदी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने दिया है |टूटते -बिखरते रिश्तों को जुडाने में नारी की क्षमता का इस्तमाल करने से कई दिलों को शन्ति मिलतें के संभावना है | भारतीय समाज में दहेज प्रथा एक गंभीर समस्या है |बेटियों को अच्छे घराने में भिजवाने के लिए लाखों रुपया देना पड रही है |यह परिवार के आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव डालता है |इसलिए ही होनेवाला बच्चा लडकी है जानने से माता-पिता डरते है \इस कहानी में सातों पुत्रियों के पिता को दिखा कर प्रेमचन्द बता रहा है इस तरह डरने की कोई आवश्यकता नहीं\विवाह के नाम पर हो रहे खर्च,परिवार में नारि को मिल रहे दोयम दर्जे का स्थान जैसे कई समस्याओं के बारे में प्रेमचन्द जी इस कहानी में बताया है |भारतीय गाँवों की संस्कृति,सामजिक व्यवस्था ,मेला आज़ादी के लिए तडपनेवाले तत्कालीन भारतीय समाज आदि भी पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करना लेखक का उद्देश्य रहा है | कहानी के तत्वों के आधार पर हुए इस अध्ययन के बाद हम कह सकते है,'बड़े घर की बेटी'एक सफल कहानी है |👉📣 ऑडियो क्लास
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भीष्म साहनी -चीफ की दावत
आधुनिक हिंदी साहित्य के चर्चित लेखक
प्रेमचन्द परम्परा के चर्चित लेखक
प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव के रूप में कार्यरत
भारत सरकार ने 'पद्मभूषण 'से अलंकृत किया है
उपन्यास -'तमस','झरोखे','नीलू नीलिमा नीलोफर ' आदि
नाटक -'कबीरा खड़ा बाज़ार में ,'हनुष' आदि
आत्मकथा -आज के अतीत
कथावस्तु
श्यामनाथ के घर में उसका विदेशी चीफ आनेवाला है |चीफ के लिए एक पार्टी का आयोजन किया गया है ||पूरा घर सज धज कर रखते वक्त श्यामनाथ की विधवा बूढी माँ अडचन बनकर रहता है |पती-पत्नी माँ को क्या करना है ? इसके बारे में सोचते है और और अंत में माँ से कहा जाती है पार्टी खत्म होने तक अतिथियों के सामने मत आए| माँ को अपने नए कपड़ा पहन कर बाहर रखे कुर्सी पर बैठने और लोग आते वक्त अपने कमरे में जाने की सलाह दी गयी | पार्टी रात देर तक होने के कारण बेचारी सो गयी और सब को माँ को देखने का मौका भी मिली |माँ को देख कर भारतीय अफसर और उनके पत्नियाँ हँसते है | मगर ,चीफ को माँ बहुत अच्छा लगता है और माँ से फुलकारी बनाकर देने की प्रार्थना करता है |ठीक तरह देख नहीं पाने पर भी अपनी बेटे की भलाई के लिए वह फुलकारी बनाने के लिए तैयार हो जाती है |
पात्र और चरित्र चित्रण
श्यामनाथ,शामनाथ की बूढ़ी मां,चीफ श्यामनाथ की पत्नी आदि इस कहानी के पात्र है |श्यामनाथ एक विदेशी कम्पनी में नौकरी करनेवाला व्यक्ति है ,जो अपनी भलाई के इए कुछ भी करने से हिचकता नहीं |श्यामनाथ तो प्रदर्शनप्रिय,संवेदन शून्य समकालीन मध्यवर्ग के प्रतिनिधि के रूप में बनाया गया पात्र है |वात्सल्य की प्रतिमा बूढ़ी माँ अपने बेटे के लिए प्राण तक देने के लिए तैयार होनेवाले सभी माताओं के प्रतिनिधि के रूप में हमारे सामने आ रहे है | माँ अपनी गहना बेच कर अपनी बेटा को पढ़ाते है |वही बेटा माँ को बोझ समझ रहा है |फिर भी माँ की ममता को कोई कमी नहीं होती| भारत की महिमा पह्चानेनेवाले विदेशियों के प्रतिनिधि पात्र है इस कहानी का चीफ |
संवाद
कहानी की कथावस्तु को आगे ले चलनेवाला तत्व है ,संवाद |संवाद कहानी का आत्मा है |इस कहानी में भीष्मसाहनी जी ने समकालीन मध्यवर्गीय परिवार के भाषा में संवाद तैयार किया है |प्रत्येक पात्र के आदत समझ पाने युक्त संवाद योजना इस कहानी की विशेषता है |प्यार,नफरत,नशा सब शब्दों के माध्यम से लेखक ने पाठकों को दिया है |
देश- काल कहानी कहाँ घटित हो रहा है ,यह जानकारी पाठकों को मिलने से कहानी की ओर वे आकृष्ट होंगे | 'चीफ की दावत ' भारतीय परिवार की कहानी है |प्रत्येक मध्यवर्गीय परिवार में ऐसी घटना होने की संभावना भी है | भाषा -शैली प्रत्येक लेखक का अपनी भाषा और अपनी शैली होना तो आम बात है |इस कहानी में भीष्मसाहनी जी ने समकालीन भाषा और शैली को अपनाया है |उद्देश्य विकास के साथ संवेदन शून्य बननेवाले समाज की कहानी लेखक ने हमारे सामने प्रस्तुत किया है| अपनी माँ को बोझ समझनेवाला बेटा ,उससे अब भी कुछ फायदा है,समझने पर प्यार दिखाता है |अपना सब कुछ बेटे के लिए बली दिए माँ अंतिम पल तक बेटे की भलाई के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाती है |रिश्तों में पीढयों के बीच आये परिवर्तन इस कहानी के माध्यम से हमें बताना लेखक का मुख्य उदेदेश्य रहा है |समाकालीन समाज में मानवीय मूल्यों का विघटन ,आधुनिकता के पीछे जाने के कारण हमसे खो रहे जीवन मूल्य,पारिवारिक रिश्तों में बदलते सभ्यता के साथ हो रहे विघटन आदि कई समस्याओं की ओर लेखक इशारा कर रहा है |विदेशी चीज़ों के पीछे दौडनेवाले नयी पीढ़ी अपनी संस्कृती पहचानता ही नहीं|यह मानसिक दासता के लिए मौक़ा प्रदान करेंगे |इससे बचने की सलाह लेखक ने दिया है |
इस अध्ययन के बाद हम कह सकते है 'चीफ की दावत एक सफल कहानी है |
👉📣 ऑडियो क्लास
👩👩👩👩👩👩 आदमी का बच्चा - यशपाल हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार प्रगतिशील लेखक मार्क्सवाद से प्रभावित लेखक भगतसिंह के साथ स्वतंत्रता आन्दोलन में भगीदारीमानवीय चितेरे लेखक उपन्यास -'देशद्रोही','पार्टी कोमरेड','झूठा -सच 'आदि कहानी -'फूलो का कुर्ता','उत्तराधिकारी ' आदि आत्मकथा-'सिंहावलोकन 'मुख्यपात्र डोली ,बग्गा साहिब ,डोली की माँ कथावस्तु बग्गा साहिब मिल में चीफ इंजिनीयर था |उसकी इकलौती बिटिया थी ,पाँच वर्षीय डोली |डोली कानमेंट स्कूल में पढ रही थी |उनके घर के सामने ही नौकर ,माली आदि को रहने का घर थे |अपने घर में अकेलापन महसूस करने के कारण माली के बच्चों के साथ खेलने की इच्छा डोली को थी |मगर बग्गा साहिब और उसकी पत्नी को यह बिलकुल पसन्द नहीं था |क्योंकि वे बच्चे 'गंदे'और 'काले'है |मालिन के बच्चे को गोद में लेने के लिए डोली जिद की थी|मगर,माता-पिता ने उसे रोका था |उसी बीच बग्गा साहब के घर के कुतिया पिल्ले दिए|बग्गा साहिब पिल्लों को गर्म पानी में डुबोकर मारने को कहता है |यह खबर डोली को मिलती है |उसको दुःख होती है |तब उसे समझा देती है कि कुतिया को बच्चों को देने के लिए दूध नहीं थी |उधर माली का बच्चा भी खाने की कमी के कारण मर जाता है |तब डोली पूछती है -"आया, माली ने अपने बच्चे को गर्म पानी में डूब दिया ?"आया का उत्तर "भूख से मरते है साले कमीने आदमी के बच्चे |"हमें अपने समाज का यथार्थ स्वरुप दिखाएंगे |पात्र समाज के उच्च वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में बग्गा साहिब और पत्नी का निर्माण किया गया है |अपने ही घर के नौकर को अच्छूत समझनेवाले ये पात्र कई सवाल हमारे मन में उठाएँगे|पाँच वर्षीय बालिका डोली इस कहानी का मुख्य पात्र है |अबोध बालिका जो सवाल पूछ रही है ,वह चिंतनीय ही है |समाज के भिन्न स्तर के लोगों को इस तरह लेखक ने हमारे सामने प्रस्तुत किया है |संवाद कहानी की कथावस्तु को आगे ले चलनेवाला तत्व है ,संवाद |संवाद कहानी का आत्मा है |इस कहानी में यशपाल जी ने सरल भाषा में संवाद तैयार किया है |प्रत्येक पात्र के आदत समझ पाने युक्त संवाद योजना इस कहानी की विशेषता है |अमीर और गरीब का अंतर संवाद के माध्यम से लेखक ने प्रस्तुत किया है |
संवाद
कहानी की कथावस्तु को आगे ले चलनेवाला तत्व है ,संवाद |संवाद कहानी का आत्मा है |इस कहानी में यशपाल जी ने सरल भाषा में संवाद तैयार किया है |प्रत्येक पात्र के आदत समझ पाने युक्त संवाद योजना इस कहानी की विशेषता है |अमीर और गरीब का अंतर संवाद के माध्यम से लेखक ने प्रस्तुत किया है |