कहानी
के तत्व
1.कथावस्तु
दाम्पत्य जीवन कभी कभी लोगों को परेशान ही प्रदान करते है | 'हरी बिंदी' कहानी की नायिका भी इस
तरह परेशान में है | एक दिन उसकी पति दिल्ली जाने के कारण उसे आज़ादी मिलती है | उस आज़ादी का
सदुपयोग करने के लिए वह तैयार हो जाती है | अपनी पति के साथ जीते वक्त अपनी इच्छा के अनुसार वह कुछ
कर नहीं पाती थी | वह सुबह देर से उठती है |नौकर को छुट्टी देकर र मन चाहे वेश पहन कर हरी बिंदी लगा कर
बाहर घूमने निकलती है |फिल्म,प्रदर्शिनी आदि देखती है और फिर एक अजनबी के साथ देर तक घूमती है |काफी
पीते हुए दोनों आत्मीयता से बातें करती रहती है |एक ही टैक्सी में वापस आते है ,मगर दोनों अपने नाम तक पुछा
नहीं |
2.पात्र और चरित्र चित्रण
इस कहानी के मुख्य पात्र एक औरत है |जिसको लेखिका ने कोई नाम नहीं दी है | उस औरत की पति राजन,घर के नौकर मुंडू ,सिनेमा घर के अपरिचित व्यक्ति,चित्रकार आदि भी इस कहानी के पात्र है |प्रकृति भी इस कहानी में मुख्य भूमिका निभा रही है |
3.देश
-काल
कहानी अच्छी तरह समझने के लिए कथावस्तु कहाँ घटित हो रहा है,इसकी सूचना मिलना चाहिए | इसकी
कथावस्तु मुंबई में घटित हो रहे है | मुंबई के विभिन्न जगहों का नाम से हम यह जान सकते है |
4 .संवाद
संवाद कहानी को जीवन प्रदान करनेवाला तत्व है |कथाव्स्तु को आगे बढाने का दायित्व संवाद को है |
प्रत्येक
पात्र के मानसिक तनाव
पूरी तरह समझ पाने के लिए संवाद सहायता देती है | देखिए
-
" मुझे धुंध में घुलापन
रहता है और प्रकाश में घुटन |","अब धुंध हट जाएगी और वही तेज़ प्रकाश
वाला सूर्य निकल आएगा"|
5.भाषा -शैली
मृदुला गर्ग अपनी इस कहानी में प्रतीकात्मक भाषा का
प्रयोग किया है |'हरीबिंदी
'शीर्षक नायिका की
स्वच्छन्द प्रवृती का प्रतीक के रूप में हम ले सकते है |'धुंध' और
"सूरज" अगला प्रतीक है| इन प्रतीकों
के माध्यम से पात्रों की मानसिकता हम भली भांति समझ सकते हैं | पात्रानुकूल और प्रसंगानुकूल
भाषा का प्रयोग इस कहानी की विशेषता है|
6.उद्देश्य
मृदुला गर्ग ,इस कहानी में भारत की एक विवाहित
स्त्री एक
दिन के लिए मान ले कि वह विवाहित नहीं है, तो उसकी आम दिनचर्या
में क्या क्या बदलाव आयेंगे? इस पर विचार कर रही है | प्रस्तुत विषय
के माध्यम से समाज में नारी आज़ाद है या नहीं,यह सवाल भी
उठा रही है |शादी शुदा होने के बाद अपनी मर्जी के अनुसार जीने का मौका मिलनेवाली नायिका कैद से बाहर आये कैदी की तरह अपनी आजादी का मजा लेती है |समाज की वास्तविकताओं
के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करके स्वप्न की दुनिया से बाहर आ कर सफल,सबल समाज बनाने की
प्रेरणा देना लेखिका की मुख्य उद्देश्य है | समकालीन
समाज में, दाम्पत्य जीवन की
एकरसता पारिवारिक संबंधों
में बदलाव ला रहे है | समाज में आज तलाक
लेनेवालों की संख्या बढने का कारण भी यही है|इसके आलावा इन समस्याओं पर भी विचार की गयी
है|
मुख्य चर्चित समस्याएँ
- पति की अनुपस्थिति में समय काटती
महिला
- नारी
की इच्छाओं को मान्यता नहीं मिलना
- अपने
इच्छा के अनुसार जीने के लिए तड़पनेवाली नारी
- दाम्पत्य
संबन्धों की विषमता
- जीवन
के छोटे-छोटे सुख भी स्त्री को मिलता नहीं
- निजी
सोच और आकांक्षाओं के अनुरूप जीना चाहने वाली नारी
- स्वतंत्रचेता स्त्री को उसकी
इच्छानुकूल साथी नहीं मिलता
- नारी
स्वातंत्र्य की समस्या
इस विश्लेषण के बाद हम कह सकते है ,'हरी
बिंदी'एक सफल कहानी है
1.सप्रसंग
व्याख्या कीजिए -" मुझे धुंध में घुलापन रहता
है और प्रकाश में घुटन |"
यह वाक्य मृदुला गर्ग जी द्वारा विरचित 'हरिबिंदी'कहानी
से लिया गया है |कहानी की नायिका यह वाक्य कह रही है |
अपनी पति दिल्ली जाने के कारण कहानी की
नायिका को आज़ादी मिलती है |एक दिन वह अपनी इच्छा
के अनुसार जीवन चला रही है |खिड़की से बाहर देखते
वक्त धुध दिखाई देती है ,बारिश होने वाला है |यह उसको ख़ुशी प्रदान करती है |
जीवन के एकरसता के कारण ऊब रही विवाहिता
नारी की मानसिकता इस कहानी में चित्रित किया
है |
2.सप्रसंग
व्याख्या कीजिए -"अब धुंध हट जाएगी और वही तेज़ प्रकाश वाला सूर्य निकल आएगा
"|
Photo courtesy -Wikipedia
**************************************************************************
शव यात्रा -ओमप्रकाश वाल्मीकि
हिंदी में दलित साहित्य के विकास में मुख्य भूमिका निभानेवाल साहित्यकार |
कविता संग्रह:-सदियों का संताप, बस्स! बहुत हो चुका, अब और नहीं, शब्द झूठ नहीं बोलते
आत्मकथा:- जूठन
कहानी संग्रह:- सलाम, घुसपैठिए, अम्मा एंड अदर स्टोरीज, छतरी
नाटक:- दो चेहरे, उसे वीर चक्र मिला था
PIC courtesy-wiki media comos
'मुख्य पात्र
सुरजा
संतो
कल्लन (कल्लू)
सरोज
सलोनी
कहानी के तत्व
1.कथावस्तु
जाती के नाम पर हो रहे शोषण का मार्मिक चित्रीकरण सुरजा कल्लन के माध्यम से वाल्मीकि जी ने किया है | कल्लू बचपन में ही गाँव छोड़ कर शहर जाते है और रेलवे में नौकरी पाते है |उसका पिता सुरजा चमारों के गाँव में जी रहा था |बल्हार होने के कारण सुरजा को ढेर सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता था | फिर भी वह गाँव छोड़ कर बेटे के साथ शहर जाने के लिए तैयर नहीं था |कल्लन पिता और बहन के लिए पक्का घर बनाना चाहता है |लेकिन गाँव का मुखिया अनुमति नहीं देता |इसी बीच कल्लन की बिटिया सलोनी बीमार पडती है और गाँव के डोक्टर उसको इलाज करने के लिए तैयार नहीं होते |क्योंकि कल्लन बलहारा था |शहर के अस्प्ताल में पहुंचने के पहले ही वह मर जाती है |लाश दफनाने के लिए भी गाँववाले कोई मदद नहीं देते | सलोनी की शवयात्रा में शामिल होने के लिए भी गाँव से कोई आता ही नहीं |सुरजा ,कल्लन,संतो और सरोज लाश दफनाने के लिए ले जाते है |
2.पात्र और चरित्र चित्रण
'शवयात्रा' कहानी के पात्र है -सुरजा कल्लन ,सरोज और सलोनी , गाँव के मुखिया ,ठेकेदार ,राहगीर आदि | सुरजा पुराने पीढ़ी के प्रतिनिधि पात्र है |उसके परिवार के बाकी लोग नई पीढ़ी के प्रतिनिधि पात्र है |
3.देश -काल
कहानी अच्छी तरह समझने के लिए कथावस्तु कहाँ घटित हो रहा है इसकी जानकारी परम आवश्यक है |यह कहानी भारत के किसी गाँव में घटित हो रहे है |
4 .संवाद
कथावस्तु को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण भूमिका संवाद निभाता है |इस कहानी में लेखिका कथा की गतीशीलता के उपयुक्त छोटा छोटा संवाद प्रस्तुत किया है |प्रत्येक पात्र के मानसिक तनाव पूरी तरह समझ पाने के लिए संवाद सहायता देती है |
5.भाषा -शैली
सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी भाषा का प्रयोग इस कहानी की विशेषता है |स्थानीय ग्रामीण भाषा बोली का सुंदर प्रयोग इस कहानी में अन्यत्र दिखाई देते है |पात्रानुकूल भाषा और शैली इस कहानी में देख पाएँगे | दलित और गैर दलित लोग एक ही समाज में जी रहे है | उनमे कोई अंतर नहीं होना चाहिए | लेकिन दोनों में समता नहीं है सामजिक न्याय की भाषा का प्रयोग इस खानी की
विशेषता है |
6.उद्देश्य
शवयात्रा' कहानी में दलितों के अन्तर्विरोध का चित्रण हुआ है |दलित जतिंयाँ आपस में समानता का व्यवहार करने के बजाय अपने अपने उच्चता बोध को स्थापित करना चाहता है |दलितों के यातनापूर्ण जिंदगी का पर्दाफाश करना लेखक का मुख्य उद्देश्य रहा है | गाँवों में डॉक्टरों की कमी,ठेकेदारों के शोषण,सरकारी कर्मचारियों का शोषण,यातायात की कमी जैसे कई समस्याओं के कारण ग्रामीण गाँव छोड़ कर शहर की ओर जा रहे हैं -आदि की सुचना इस कहानी में किया गया है | सुरजा का कथन -"गाँव अब रहने लायक नहीं|" कई सवाल हमारे सामने खड़ा कर रहा है | शिक्षा के क्षेत्र में,नौकरी के क्षेत्र में, ऍम जीवन में दलितों को को क्या -क्या सहना पड़ता है -यह इस कहानी के माध्यम से लेखक समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया है |
चर्चित समस्याएं
- चमारों के बीच बल्हार परिवार की समस्या
- भारतीय समाज में जातिवाद
- भारतीय गाँव का यथार्थ चित्रण
- ग्रामीणों पर हो रहे अत्याचार
- भारतीय जनतंत्र का यथार्थ स्वरूप
- गांवों में दादागिरी
- शोषण के विविध रूप
- मानव से दूर हो रहे मानवीयता
- भारतीय गांवों में अस्पतालों की कमी
- सरकारी कर्मचारियों का व्यवहार
- दलित विमर्श
- दलित का आतंरिक भेदभाव मिटाना है
- शहर में नाम खो रहे आम लोग
- गांवों में यायायात की कमी
इस विश्लेषण के बाद हम कह सकते है ,'शवयात्रा 'एक सफल कहानी है |
शवयात्रा कहानी वाचन और व्याख्या
आगे सुनें कल्लन की त्रासद कहानी
आगे सुनें कल्लन की त्रासद कहानी
भारतीय दलित जीवन का यथार्थ दस्तावेज़ आगे सुनें
जात जिस तरह लोगों मुसीबतें पैदा कर रहे है ,सुने
कल्लन ,सुरजा की त्रासद कहानी
जात जिस तरह लोगों मुसीबतें पैदा कर रहे है ,सुने
जात को प्रमुखता देनेवाले समाज का चित्रण
एक शवयात्रा की कहानी
नाख़ून क्यों बढ़ता है ? हजारीप्रसाद द्विवेदी
- नाखून क्यों बढ़ते है एक ललित निबंध है
- राष्ट्र ,राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति पर विहंगम रूप से विचार किया गया है |
- बच्चे कभी कभी फसानेवाला सवाल पूछता है
- पुराने समय में नाख़ून की आवश्यकता
- नाख़ून का बढना जैविक कार्य
- नाख़ून का बढना मानव के पाशविक वृत्ति का ध्योतक
- नाख़ून काटना मानवीयता का ध्योतक
- हथियारों की संख्या बढाना पाशविक कार्य
- अपने ही बंधनों से अपने को बांधना
- प्रेम ही बड़ी चीज़ है
- अस्त्र शस्त्र पशुता की निशानी
- हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है अपने आप पर अपने आपके द्वारा लगाया हुआ बंधन ।
- महात्मा गांधी ने समस्त जन समुदाय को हिंसा, क्रोध, मोह और लोभ से दूर रहने की सलाह दी
- बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को याद दिलाती हैं कि तुम भीतर वाले अस्त्र से अब भी वंचित नहीं हो।
- मनुष्य को एक बुद्धिजीवी होने के नाते परिस्थिति के अनुसार साधन का प्रयोग करना चाहिए।
- मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के लिए नि:शेष भाव से दे देने में है।
- नाखून मानव के पाशविक वृत्ति के जीवंत प्रतीक
- इंडिपेंडेंस का अर्थ
- सब पुराने अच्छे नहीं होते,सब नए खराब नहीं होते
- मनुष्य और पशु का अंतर्
- मनुष्य और संयम
- मनुष्यता मनुष्य को मनुष्य बनाता है
- सुख के लिए बाहर नहीं ,अंतर् देखना है
- अस्त्र बढ़ाना पशुता का लक्षण
प्राचीन युग में मानव नाख़ून हथियार के रूप में इस्तमाल किया था
नाख़ून को विभिन्न ढंग से काटने एवं सँवारने का युग बाद में आया
नाख़ून का बढ़ना शरीर में अब भी पाशविक गुण है -सूचित करता है
नाख़ून का बढ़ना पशुता का तथा उनका काटना मनुष्यत्व का प्रतीक ह
सोना हिरनी-महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा (26 मार्च, 1907 — 11 सितंबर, 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्री
हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं
मुख्य रचनाएँ
दीपशिखा, मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार
सुनो - सोना हिरनी
रेखाचित्र
सोना हिरनी और महादेवी वर्मा की रिश्ता
महादेवी वर्मा हिरनी का पालन न करने का निर्णय लेने का कारण
सोना हिरनी का व्यवहार
महादेवी वर्मा की पालतू जानवरों से प्यार
सोना हिरनी और बच्चे
सोना हिरनी और अन्य जीव
सोना हिरनी के आज़ादी की चाह
मानव का क्रूर व्यवहार
भक्तिन और महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा के अन्य पालतू जानवर
मानव का जानवरों पर अत्याचार
सोना हिरनी और छात्रावास के लडकीयाँ
सोनहिरनी की जीवन चर्या
महादेवी वर्मा की सैर
महादेवी वर्मा का नौकरों से व्यवहार
हरिशंकर परसाई -सदाचार का ताबीज़
हिंदी साहित्य के व्यंग्य साहित्यकार
वे हिंदी के पहले रचनाकार है¸ जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दरजा दिलाया
कहानी-संग्रह-हंसते हैं-रोते हैं, जैसे उसके दिन फिरे, दो नाकवाले लोग, रानी नागफनी की कहानी।
उपन्यास -तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी, ज्वाला और जल|
वसुधा’ पत्रिका के संस्थापक सम्पादक
निबंध - तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, वैष्णव की फिसलन, विकलांग श्रद्धा का दौर, माटी कहे कुम्हार से, शिकायत मुझे भी है, और अन्त में, हम इक उम्र से वाकिफ हैं, काग भगोड़ा, माटी कहे कुम्हार से, प्रेमचन्द के फटे जूते, तुलसीदास चंदन घिसैं, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, आदि।
- भ्रष्टाचार समाज में किस तरह व्याप्त हुआ है
- अधिकारी लोगों से कुछ पाने के लिए चापलूसी करनेवाले लोग
- भ्रष्टाचार -सूक्ष्म,अगोचर और सर्वव्यापी
- भ्रष्टाचार अब ईश्वर हो गया है
- भ्रष्टाचारऔर सदाचार मनुष्य के आत्मा में रहता है
- आदमी आत्मा के पुकार के अनुसार काम करता है
- अधिकारी लोगो को अस्वस्थ बनानेवाले को ख़त्म करने की प्रथा
- कर्मचारी को उचित तनख्वाह न मिलना
- काम कोई करता है और फल भोगता है दूसरा कोई
सकु बाई - नादिरा जहीर बब्बर
- प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक कामरेड सज्जाद ज़हीर की बेटी
- रंगमंच सिनेमा और टेलीविजन की मशहूर कलाकार
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
- 'सक्कू बाई' में उच्च वर्ग के जीवन के विरोधाभास को उजागर किया गया है |
- महिला प्रधान नाटक
- सक्कूबाई की संघर्ष
- शकुन्तला से स्क्कुबाई की और का सैर
- गाँव से शहर की और का सैर
- शहरीय ज़िन्दगी का यथार्थ चित्रण
- सक्कूबाई ऐसी महिला है जो अपने काम से भी मनोरंजन और अानंद के मौके ढुंढ ही लेती है
- वह अशिक्षित होते हुए भी बहुत मज़बूत और सुलझी हुई है,
- जीवन से लड़नेवाले नारी का प्रतिनिधि
- घर और समाज में असुरक्षित नारी का चित्रण
- शिक्षित और अशिक्षित एक ही समान नौकरी ढूंडना
- पति ,पत्नी और वह
- नारी को घर का काम और नर को बाहर का काम
- शिक्षा से वंचित होती नारी
- नारी शिक्षा
- गरीब और अमीर का अंतर
नाटक के तत्वों के अधर पर सकू बाई 'का मूल्याङ्कन कीजिए
प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक कामरेड सज्जाद ज़हीर की बेटी नादिरा जहीर बब्बर द्वारा
विरचित एक नाटक है ,'सकू बाई'|इसमें एक काम करनेवाली औरत की नजरिये में समकालीन दुनिया
का सही चित्रण लेखिका नै दिया है |
कथावस्तु
नाटक का मुख्य पात्र सकू बाई ,अपनी आई लक्ष्मी और भाई नितिन के साथ महाराष्ट्र के गाँव से
बम्बई शहर आई है | गृहस्थी बिगड़ने के कारण ही वे बम्बई आये |दुसरे घरों में काम करके वे अपना जीवन
चला रहे है |उस तरह जीवन चलते वक्त समाज के विभिन्न लोगो के यथार्थ चेहरा पहचानने का मौका उनको
मिलती है |बड़े घरों में जो अनैतिक व्यवहार होते है,उसके बारे में सकू बाई हमें बताती है |काम करनेवाली औरतों
की समस्याओं पर सकू बाई बीचों बीच प्रकाश डाल रही है| बाई को छुट्टी देने के लिए कोई तैयार नहीं होते|
सकुबाई के पिता,पति और बहन की मृत्यु हो जाते है |अपने ही घर में अपने ही रिश्तेदारों के बीच असुरक्षित नारी
का चित्र ,अपने ही अनुभव के माध्यम से वह हमें बता रही है | बुरा व्यवहार के शिकार होने पर भी उसकी बेटी
साइली को अच्छी तरह पढ़ कर आगे बढाती है |बचपन में सकू बाई को शिक्षा लेने का मौका नहीं मिलता |साईंली
अपनी माँ से दूसरों की घर के काम न करके शिक्षा प्राप्त करने की सलाह देती है |गरीब लोगो को समाज के
प्रत्येक कोने में जिन समस्याओं से गुजरना पड़ता है ,यह इस नाटक में हमें देखने को मिलेंगे |
पात्र और चरित्र चित्रण
'सकू बाई'नाटक का मुख्य पात्र है,शकुंतला(सकू बाई) | शकुंतला सकू बाई नाम से हमारे सामने आती है| आजीविका कमाने के लिए गाँव से शहर में आनेवाले लाखों औरतों की प्रतिनिधि के रूप में सकू बाई का प्रस्तुतीकरण हुआ है |नारी के बालिका,युवती,माँ ,दादी माँ रूपों में सकू बाई समाज में नारियों पर हो रहे शोषण हमारे सामने दिखा रही है |सकू बाई की आई,नितिन,साइली,यशवंत,रुंगटा साहीब,सुरेखा राणी जैसे अन्य पात्र भी है जो इस नाटक को मर्म स्पर्शी बनाते है | प्रत्येक पात्र समाज के किसी न किसी वर्ग के प्रतिनिधि के रूप मे सामने आते है |
संवाद
नाटक के कथावस्तु को आगे बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका संवाद का है |इस नाटक में लेखिका ने छोटे -छोटे संवाद का प्रयोग किया है |
भाषा शैली
इस नाटक में मराठी -मिश्रित हिन्दी का प्रयोग लेखिका ने किया है | नादिरा जहीर बब्बर की कहानी कहने की विशिष्ट शैली इस रचना में दर्शनीय है |
देश -काल
नाटक अच्छी तरह समझने के लिए वह कहाँ घटित हो रहा है,इसका जानकारी होना है|यह नाटक भारत क्र बम्बई शहर में घटित हो रहे है | वहाँ के जीवन का सही चित्रं लेखिका ने प्रस्तुत की है |
उद्देश्य
हमारे समाज में औरतों का स्थान क्या है ?इस सवाल का उत्तर देना लेखिका का मुख्य उदेश्य है |एक औरत की दृष्टी में दुनिया को दिखाने के लिए ही सकू बाई हमारे आमने प्रस्तुत हो रही है |बड़े और मध्य वर्ग के घरों में सहायता के लिए बाई को रखती है|घर के सभी कम करने पर भी उनको उचित वेतन और छुट्टी कभी मिलता ही नहीं|उनकी समस्या पर चिंता करने के लिए यह नाटक हमे प्रेरणा देते है |शहर की ओर गाँवों से लोगों की बहाव एक ज्वलंत समस्या है |गांवों में बढ़ रहे नौकरी की समस्या ही इसका मूल कारण है |इस तरह आ रहे लोग बेनाम और बेघर हो कर ही शहरों में जी रहे है| छोटे कमरों में इस तरह जीनेवाले औरतों को अपने ही परिवार के लोग बुरी नजर से रखते है और कभी उन पर हमला भी करते है | परिवार में शान्ति बनाये रखने लिए औरत कभी चुप रह जाती है|इस चुप्पी के लिए शायद उनको अपनी जीवन ही देना पडता है |औरतों को स्वरक्षा के लिए शिक्षा मिलना परम आवश्यक है |नारी को घर का काम और नर को बाहर का काम और शिक्षा यह विचार बदलना ही चाहिए |इस तरह बदलेनेवाले समाज का प्रतिनिधित्व साइली कर रही है |सरकारी अस्पतालों में सही तरीके से उपचार सभी को नहीं मिलते |जिनके पास रुपया है उनको ही इलाज मिलते है |पति ,पत्नी और वह जिस हद तक समाज में व्याप्त हो चुके है ,यह लेखिका दिखा रही है |इस समस्या से बचने के लिए स्त्री को स्वावलम्बी होना है|इस के लिए समाज को नारी शिक्षा पर जोर देना जरूरी है |
इस अध्ययन के बाद हम कह सकते है,सकू बाई एक सफल नाटक है
चर्चित समस्याएँ
👼 समाज में नारी का स्थान
👼 परिवार में नारी का हाल
👼 नारी को घर का काम और नर को बाहर का काम मनोभाव
👼 नारी सब कुछ श कर जीने को बाध्य है -मनोभाव के कारण हो रहे समस्याएं
👼अस्त व्यस्त परिवार,अस्त व्यस्त समाज
👼 काम करनेवाली औरतों की समस्याएँ
👼अमीर और गरीब का अंतर
👼 भूमंडलीकरण का प्रभाव
👼 नारी शिक्षण की जरूरी
👼समाज में बढ़ रहे पती -पत्नी और वह की समस्या
👼संस्कृति से दूर होने के कारण हो रहे अपचय
👼देशी भाषाओं पर हो रही हमला
👼गाँवों के कमियाँ
👼गाँव से शहर की और बढ़ रहे लोगों का बहाव
👼विस्थापन की समस्या
👼बेनाम,बेघर जी रहे लोगों के हाल
👼नारियों में आत्म सम्मान बढाने की आवश्यकता
Revision